हस्तरेखा



                         ।। हस्तरेखा ।।

यदि कोई विज्ञान, कला एवं काव्य आरंभ से ही मानव जाति के सुधार और प्रगति से प्रेरित होता दिखाई दे तो उसको वह प्रोत्साहन और मान्यता प्राप्त होने ही चाहिए जिसका वह अधिकारी है। मनुष्य की प्रकृति के विश्लेषण अध्ययन एवं प्रशिक्षण करने के जितने भी माध्यम हैं उनमें सबसे अधिक महत्व हस्तरेखा को दिया जाता है क्योंकि या एक अत्यंत शक्तिशाली माध्यम है ।। इसके द्वारा ना केवल व्यक्ति की त्रुटियों को जाना जा सकता है बल्कि फुंसियों को दूर करने के उपायों को भी पता लगाया जा सकता है हाथ मनुष्य के आचरण रूपी बक्से की चाबी है , जिसके भीतर प्रकृति में प्रेरक शक्ति और उसकी अंतर्निहित क्षमताओं, गुणों एवं कार्य शक्ति को बंद किया हुआ है जिसके द्वारा हम स्वयं को पहचान कर अपने जीवन को रूपांतरित कर सकते हैं । हम में से शायद एक कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने अपने अतीत का सर्वेक्षण करके या अनुभव न किया हो कि विगत जीवन के कितने मास वर्ष अथवा बहुत बड़ा हिस्सा माता पिता अथवा अपने अज्ञान के कारण निरर्थक गवां दिया ।। हमारे पूर्वजों का यह कहना है कि अपने आप को पहचानो इतना व्यापक और अर्थपूर्ण है कि उसको भूलना अत्यंत कठिन है। प्राकृतिक के संबंध में ज्ञान प्राप्त करके जब हम उसके अस्तित्व और महत्व को स्वीकार कर लेते हैं तो हमें ऐसे अध्ययन और पठन पर भी विचार करना चाहिए जो हमें इस संबंध में और अधिक ज्ञान देने में सहायक हो सके। अपने बारे में ज्ञान प्राप्त करके ही हम अपने ऊपर अधिकार भी रख सकते हैं और अपनी उन्नति करते हुए मनुष्य  की भी उन्नति कर सकते हैं । हस्तरेखा स्वयं एवं दूसरे  को जानने से संबंध रखता है । इसलिए मेरा अपने पाठकों से या अनुरोध है कि वह इन पृष्ठों को पढ़ते हुए अपनी जिज्ञासा को पूर्ण रूप से बनाए रखें इसलिए मैं स्वयं भी उन्हीं की तरह इस विज्ञान का एक अध्येता बनकर आगे चलूंगा , न कि इसका पक्षधर बनकर । अब मैं तर्क वितर्क को छोड़कर इसके अध्ययन का इतिहास प्रस्तुत कर रहा हूं क्योंकि मेरा विश्वास है कि मेरे इस साइट के माध्यम से सभी पाठकों के सामान्य ज्ञान को प्राप्त तृप्त कर सकेगा । हस्तरेखा विज्ञान की उत्पत्ति पर विचार करने के लिए हमें विश्व का इतिहास के आरंभिक दिनों की ओर देखना होगा तथा मनुष्य के उन आदिकालीन पूर्वजों का स्मरण करना होगा जिन्होंने साम्राज्य राष्ट्र जातियों और आज कुल्लू के नष्ट हो जाने पर भी अपने ज्ञान के भंडार को सुरक्षित बनाए रखा ज्ञान का भंडार आज भी उस व्यक्तित्व से उसी प्रकार परिपूर्ण है जैसा कि वह हजारों वर्ष पूर्व समय था हां आज के समय में कुछ विलीन हुआ होगा लेकिन हमारे पूर्वजों ने इस ज्ञान को सुरक्षित बनाए रखा मेरा संकेत पूर्व की ओर रहने वाले अनेक सनातनी विद्वानों की ओर है जिनके दर्शन और अज्ञान को आज फिर से मान्यता प्राप्त होती जा रही है विश्व इतिहास के प्रारंभिक दिनों पर दृष्टि डालने से हमें यह पता चलता है कि भाषा विषयक सामग्री सर्वप्रथम उन्हीं लोगों के पास थी तथा सभ्यता उस काल को आर्य सभ्यता के नाम से जाना जाता है हम इतिहास से बाहर तो नहीं जा सकते परंतु भारत की गुफाओं में बने मंदिरों और कृति स्तंभ पर विचार करते हैं यह कह सकते हैं  कि यह मंदिर और स्तंभ इतने पुराने हैं कि इतिहास भी निर्माण काल का पता बताने में असमर्थ है उन बातों का प्रशिक्षण करते हुए हमारी बुद्धि शून्य में खो जाती है क्योंकि हमारी आयु और हमारा  युग एक शिशु की भांति है।



हस्तरेखा विज्ञान के मूल स्रोत को जानने के लिए हम प्रागैतिहासिक काल की ओर देखते हैं तो हमें पता चलता है कि आर्य सभ्यता के काल में उन लोगों की अपनी भाषा और अपना साहित्य था। आज भी उस साहित्य के अनेक ज्वलंत उदाहरण उपलब्ध हैं, जिनसे हमें यह पता चलता है कि उस साहित्य में ना जाने कितना गुप्त ज्ञान भरा है। आज जबकि हमारे लिए न तो कोई दिशा निर्देशक नक्षत्र है और ना ही हमें अस्त होते चंद्रमा से कोई प्रकाश मिल सकता है अर्थात- (आकाशवाणी मिल सकता है) और ना हम कोई साहसिक प्रयास ही कर सकते हैं ज्ञान की सीमाओं पर खड़े हुए हम अज्ञान के अंधकार में टकटकी लगाकर देख रहे हैं जहां तक उन लोगों का संबंध है जिन्होंने सबसे पहले हस्तरेखा को समझा और उसे व्यवहारिक रूप दिया उनकी विद्वता के संबंध में हमारे सामने अनगिनत अकाट्य प्रमाण मौजूद हैं प्राचीन काल की भारतीय इमारतें हमें बताती है कि  यूनान और इजराइल की स्थापना से भी बहुत पहले भारत में ज्ञान का बहुमूल्य भंडार एकत्र कर लिया गया था। प्राचीन भारतीय मंदिरों से खगोल शास्त्र की प्राप्त गणना के अनुसार ईशा शताब्दियों पहले हिंदुओं को अयन गति का ज्ञान प्राप्त था। प्राचीन काल की कुछ भारतीय गुफाओं से प्राप्त नार्सिन्ही मूर्तियों की रहस्यपूर्ण आकृतियां अपने मुक भाषा में हमें बताती है कि भारतीय विद्यालयों को भी ज्ञान अन्य देशों से भी पहले प्राप्त हुआ ; अपने उसी ज्ञान और विज्ञान की उपलब्धियों के कारण हुए बाद में प्रसिद्ध हुए। अभी-अभी सी दुआ की सौर मार्ग पर एक राशि से दूसरी में प्रवेश करने के लिए सूर्य 2140 वर्ष लगते होंगे । अब तो इन बातों को बीते ना जाने हजारों वर्ष बीत चुकी होंगी। इस सूक्ष्म के निरीक्षण के लिए जिस प्रकार की मानसिक शक्ति की आवश्यकता पड़ी होगी वह अपना परिचय स्वयं है । अपने इस विषय के अध्ययन के मूल स्त्रोतों की खोज हम ऐसी यह किसी जाति में कर सकते हैं । हिंदुओं के वेद जो प्राचीनतम ग्रंथ है यूनान तक के ज्ञान का मूल आधार है ।
  

मेरा आज का इसका पहला भाग यहीं समाप्त होता है फिर हम कल आएंगे पुनः जाने से पहले हमारी पोस्ट आपको पसंद आया हो तो उसे शेयर और कमेंट जरूर करें धन्यवाद ।। 

     🙏🙏🙏🙏🙏🙏

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ